आसक्ति और मोह : भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि जब हम किसी चीज़ में आसक्ति और मोह के साथ लग जाते हैं
आसक्ति और मोह : भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि जब हम किसी चीज़ में आसक्ति और मोह के साथ लग जाते हैं
तो हम उस चीज़ के लिए हर समय चिंता करते रहते हैं और उसके बिना नहीं रह सकते हैं। यह हमारी आत्मा को बंद कर देता है और हमारी प्रगति को रोकता है।
तो हम उस चीज़ के लिए हर समय चिंता करते रहते हैं और उसके बिना नहीं रह सकते हैं। यह हमारी आत्मा को बंद कर देता है और हमारी प्रगति को रोकता है।
अहंकार : अहंकार के कारण हम अपने आप को बड़ा और महत्वपूर्ण मानने लगते हैं, और हम दूसरों को छोटा और अपमानित करने का प्रयास करते हैं।
अहंकार : अहंकार के कारण हम अपने आप को बड़ा और महत्वपूर्ण मानने लगते हैं, और हम दूसरों को छोटा और अपमानित करने का प्रयास करते हैं।
इससे हमारा आत्मा दूसरों के साथ मिलकर काम करने की क्षमता में कमी आती है।
इससे हमारा आत्मा दूसरों के साथ मिलकर काम करने की क्षमता में कमी आती है।
क्रोध, और लोभ : ये तीनों भावनाएँ हमारे बर्बादी के प्रमुख कारण हो सकती हैं। जब हम अपनी इच्छाओं के प्रति आसक्त होते हैं,
क्रोध, और लोभ : ये तीनों भावनाएँ हमारे बर्बादी के प्रमुख कारण हो सकती हैं। जब हम अपनी इच्छाओं के प्रति आसक्त होते हैं,
तो हम क्रोध और लोभ में पड़ सकते हैं, जिससे हमारे विचार और क्रियाएँ विक्षिप्त हो सकती हैं।
तो हम क्रोध और लोभ में पड़ सकते हैं, जिससे हमारे विचार और क्रियाएँ विक्षिप्त हो सकती हैं।
अज्ञान : भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि अज्ञान हमारी आत्मा को हमारे असली स्वरूप से अज्ञानी बना देता है। हम अपनी आत्मा को नहीं जानते और अपने कर्मों के परिणामों को समझने में असमर्थ रहते हैं।
अज्ञान : भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि अज्ञान हमारी आत्मा को हमारे असली स्वरूप से अज्ञानी बना देता है। हम अपनी आत्मा को नहीं जानते और अपने कर्मों के परिणामों को समझने में असमर्थ रहते हैं।
भगवद गीता में, भगवान श्रीकृष्ण ने इन कारणों के प्रति सावधान रहने और सही मार्ग पर चलने का मार्गदर्शन किया है,
भगवद गीता में, भगवान श्रीकृष्ण ने इन कारणों के प्रति सावधान रहने और सही मार्ग पर चलने का मार्गदर्शन किया है,
ताकि हम अपने जीवन को सार्थक और प्रागात्मिक बना सकें।
ताकि हम अपने जीवन को सार्थक और प्रागात्मिक बना सकें।